||मानव जीवन  में   ज्योतिष   और   9   अंक  का महत्त्व   ||

आज संसार में हर मानव की यह ईच्छा होती है कि वह धन, पद, मानसम्मान से युक्त हो| इसी तरह मनुष्य का जीवनचक्र मृत्यु तक 9 भागों में तीन-तीन बिन्दुओं के योग से बना हुआ है, जो इस प्रकार हैं- माता-पिता-भ्रूण, संसार-स्वांस-जीवन, गुरु-ज्ञान-विद्यार्थी, सदगुरु-ब्रह्मज्ञान-शिष्य, परिवार-जीवनसाथी-मनुष्य, कम्पनी-धन-मनुष्य, मालिक-पद/प्रतिष्ठा-मनुष्य, मित्र-प्यार-मनुष्य, मनुष्य-लकड़ी-अग्नि|    यदि इन नौ भागों में से एक भाग न हो या प्रत्येक भाग के तीन बिंदु त्रिकोण रूप में सभी कोण समान न हों तो प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन में कहीं न कहीं कमी या अधूरापन महसूस करता है और साथ ही फिर उदासीन रहता है तब वह ज्योतिश्चार्य के संपर्क में जाता है| यदि मनुष्य प्रारम्भ से ही अपने माँ-बाप, गुरु और सदगुरु के दिशानिर्देशानुसार जीवन रूपी सीढ़ी पर एक निश्चित गति से चलने की कोशिश करे तो वह उदासीनता के बजाय शान्ति और आंनंद का अनुभव कर अपने जीवन में आने वाली परेशानियों का सामना आसानी से कर सकता है| अत: संसार का प्रत्येक मनुष्य जन्म से मृत्यु के 9 भागों के प्रत्येक भाग को यदि उस त्रिकोण की भांती समझे कि जिसकी तीनों रेखाएं तथा तीनों कोण की माप बराबर हो| यदि हम इस त्रिकोण की तरह ही “जीवन जीने की कला”    को समयस्थित गुरु के दिशानिर्देशानुसार परिवर्तित करने की कोशिश करें तो निश्चित ही विपरीत परिस्थियों के होते हुए भी संसार का प्रत्येक मानव उस परम शान्ति का अनुभव कर इस मनुष्य जीवन के प्रत्येक भाग का आनंद ले सकता है|

 प्रत्येक मानव 9 महिने तक माँ के गर्भ में रहने के बाद संसार में जन्म लेता है| मानव शरीर में नौ द्वार होते हैं, जो इस प्रकार हैं- दो चक्षु द्वार, दो नसिका द्वारा, दो श्रोत द्वार, मुख, वायु व उपस्थ द्वार    क्योंकि साधना के पथ पर चलने के लिए शरीर रूपी साधन की आवश्यकता होती है, इन सभी द्वारों का मानव जीवन में बहुत महत्तपूर्ण स्थान है| इसी प्रकार प्राचीन शास्त्रों में भक्ति के भी 9 प्रकार बताये गये हैं, जिसे नवधा भक्ति कहते हैं| काव्य के नौ रस होते हैं जो क्रमशः शृंगार, करुण, हास्य, रौद्र, वीर, भयानक, वीभत्स, अद्भुत एवं शांत    के रूप में जाने जाते हैं| श्री भगवान राम का जन्म भी नवमी के दिन हुआ था| इस प्रकार 9 अंक का मानव जीवन में बहुत महत्त्व रखता है| हिन्दू धर्म के आधार पर 9 माताओं की पूजा होती है इसी कारण 9 दिन के नवरात्री के व्रत किये जाते हैं| हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली भी है|

 अब बात आती है ज्योतिष की, ज्योतिष में भी 9 के अंक का बहुत महत्त्व है| ज्योतिष के अनुसार कलयुग की वर्षों की कुल अवधि 4,32,000, द्वापर की 8,64,000 त्रेता की 12,96,000 और सतयुग की 17,28,000 वर्षों की अवधि मानी गयी है, चारों युगों की कुल वर्षावधि 43,20,000 है, प्रत्येक वर्ष की अवधि तथा वर्षावधि के अंकों का योग करें तो 9 का अंक ही आता है| एक दिन-रात में 1440 मिनट होते हैं यदि सेकेंडों में हिसाब लगाएं तो 86400 होते हैं इस प्रकार मिनटों और सेकेंडों का योग भी 9 ही आता है| हमारी जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं एक भाव 30 डिग्री का होता है, इस प्रकार पूरी कुंडली के सभी भावों का मान 360 डिग्री होता है इनका योग भी 9 होता है| ग्रहों की संख्या कुल 9 होती है| कुल 27 नक्षत्र होते हैं, जिन दो अंकों का योग भी 9 होता है| एक नक्षत्र में 4 चरण होते हैं तो कुल 27 नक्षत्रों में 108 चरण हो गए तो कुल योग 9 हो गया|

 रुद्राक्ष की माला में 108 मनके होते हैं, मंत्रों का जाप 108 बार किया जाता है तो इस प्रकार संख्याओं का कुल योग 9 हुआ| पृथ्वी और सूर्य के बीच की दूरी, सूर्य के व्यास के 108 गुना है। इसी प्रकार पृथ्वी और चंद्रमा के बीच की दूरी भी चंद्रमा के व्यास का 108 गुना है| समुद्र मंथन के समय जब क्षीर सागर पर मंदार पर्वत पर बंधे वासुकि नाग को देवता और असुरों ने अपनी-अपनी ओर खींचा था तब उसमें 54 देव और 54 राक्षस थे, कुल मिलाकर 108 लोग ही शामिल थे। कहा जाता है कि मनुष्य में कुल 108 भावनाएं होती हैं जिसमें से 36 भावनाओं का सम्बन्ध हमारे अतीत से, 36 का सम्बन्ध वर्तमान से और 36 का सम्बन्ध भविष्य से होता है। 108 डिग्री फ़ारेनहाइट शरीर का आंतरिक तापमान होता है इससे अधिक गर्म होने के कारण मानव अंग विफल हो सकते हैं। हृदय चक्र से 108 नाड़ियाँ संचालित होती है | इनमें सबसे महत्वपूर्ण सुसुम्ना नाडी है | गंगा नदी जिसे हिंदू धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है, वह 12 डिग्री के देशांतर और 9 डिग्री के अक्षांश पर फैली हुई है। अगर इन दोनों अंकों को गुना किया जाए तो 108 अंक मिलता है। भगवत गीता में 18 अध्याय, महाभारत में 18 पर्व, पुराणों की संख्या भी 18 ही होती है तो भी योग 9 ही बनता है|

 संविधान के तहत हर बच्चे के बालिग होने की उम्र 18 साल तय की गयी थी, इसका योग भी 9 बनता है| 14 सितम्बर सन् 1949 के दिन भारतीय संघ की राजभाषा के रूप में हिन्दी को स्वीकार किया गया;जो भारतीय संविधान में अनुच्छेद 343 से 351 तक कुल 9 अनुच्छेदों में समाहित हैं| मुहावरों में भी कहा जाता है “न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी”|    कहावतों में भी कहा जाता है कि “नहले पर दहला”  इस प्रकार 9 के अंक का मानव जीवन में बहुत महत्व है|

 अन्त्वोगत्वा हम यह कह सकते हैं कि ज्योतिष का मानव जीवन चक्र से प्रगाढ़ सम्बन्ध है और प्रत्येक मनुष्य को विद्वान ज्योतिषी की सलाह या दिशानिर्देशानुसार ही अपने जीवन के सभी शुभ कार्यों को करना चाहिए| ज्योतिष के सिद्धान्तों को मानना या न मानना यह आप पर निर्भर है| इस विषय में मतान्तर हो सकते हैं पर दोस्तो उपरोक्त विषयात्मक ज्ञान आप सब लोगों को भी ज्ञात ही होगा, मैं अपने अनुभव के आधार पर यह सुझाव/सलाह देना चाहता हूँ की मानव जीवन में ज्योतिषी से अधिक ज्योतिष का महत्त्वपूर्ण स्थान है, इसलिए मेरा मानना यह है कि प्रत्येक मनुष्य को ज्योतिष का ज्ञान पूरा नहीं भी हो तो, थोड़ा बहुत जानकारी तो अवश्य होनी ही चाहिए| 

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी 

  ||  कोरोना  महामारी  और  ज्योतिष    ||

बहुत दिनों से कई लोग मुझसे यह प्रश्न पूछ रहे हैं कि पण्डित जी आप यह बताओ कि यह कोरोना महामारी कब ख़त्म होगी? आज मैं अपने अनुभव के आधार पर आप लोगों को इस प्रश्न का उत्तर देने की कोशिश कर रहा हूँ|

आपका प्रश्न है कि कलयुग के ज्योतिश्चार्यों यह भविष्यवाणी क्यों नहीं कर पाए कि इस वर्ष यह महामारी होगी? दोस्तो, जैसा कि आप जानते ही हैं कॉलेज में पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों को गुरु ही कहते हैं पर सभी शिक्षक सभी विषयों के पारंगत नहीं हो सकते हैं| दूसरा उदाहरण इस प्रकार है कि सभी डॉक्टरों को डॉक्टर के नाम से ही जाना जाता है पर सभी डॉक्टर विभिन्न तरहों के रोगों का ही ईलाज करते हैं, सभी रोगों का एक डॉक्टर ईलाज नहीं कर सकता है| इसी प्रकार ज्योतिषाचार्य का मतलब यह नहीं कि वह इस तरह की महामारी का भविष्यवक्ता हों, यह कार्य तो कोई संत या महापुरुष ही कर सकता है अर्थात् ज्योतिषी न तो किसी बड़ी महामारी का भविष्यवक्ता हो सकता है और न ही वह आचार्य, पुरोहित या पण्डित का काम कर सकता है| मतलब यह है  कि जो व्यक्ति जिस विषय में पारंगत होता है, उसी विषय के बारे में कुछ सुझाव या सलाह दे सकता है|

आपको यह भी समझना होगा कि मनुष्य का भाग्य उसके द्वारा किये गए कर्म से बदलता है, मतलब मनुष्य  के कर्म के आधार पर ही उसे फल की प्राप्ति होती है, ज्योतिष आपको आपकी कुण्डली से दिशा और दशा का सुझाव/सलाह देता है| दूसरे शब्दों में ज्योतिषी उस ट्रैफिक पुलिस की तरह है जो आपको कब रुकना है, कैसे रुकना है, कब चलना है, कैसे चलना है और कहाँ चलना है, यह सलाह देता है यदि आप उसकी सलाह का अनुपालन नहीं करते हैं और अपनी मनमानी से कर्म करते हैं तो आपको उसी अनुसार कर्मफल भी मिलता है|

अब प्रश्न उठता है कि क्या किसी संत महापुरुष ने इस महामारी की कभी भविष्यवाणी की थी या नहीं? यह प्रश्न बहुत दिनों से मेरे मन में भी घर कर गया था तो मैंने संत महात्माओं के पुराने भजन, कविता और पोथी खोजना शुरू किया तो मुझे कलयुग में आने वाली महामारी के सन्दर्भ में श्री संत रविदास जी और श्री संत सूरदासजी द्वारा लिखी गयी रचनाओं का लेख मिला, जिसे मैं आपके साथ साझा कर रहा हूँ|

 श्री संत रविदास जी-

“भारत में अवतारी होगा, जो अति विस्मयकारी होगा।

ज्ञानी और विज्ञानी होगा, वो अदभुत सेनानी होगा।

जीते जी कई बार मरेगा, छदम वेश में जो विचरेगा।

देश बचाने का होगा आह्वान, युग परिवर्तन का होगा तूफ़ान।

तीनों ओर से होगा हमला, देश के अंदर द्रोही घपला।

सभी तरफ़ कोहराम मचेगा, कैसे हिंदुस्तान बचेगा।

नेता मंत्री और अधिकारी, जान बचाना होगा भारी।

छोड़ मैदान सब भागेंगे, सब अपने अपने घर दुबकेंगे।

जिन जिन ने भारत माता सताई, जिसने उसकी करी लुटाई।

ढूंढ-ढूंढ कर बदला लेगा, सब हिसाब चुकता कर देगा।

चीन अरब की धुरी बनेगी, विध्वंसक ताकत उभरेगी।

इटली में कोहराम मचेगा, लंदन सागर में डूबेगा।

युद्ध तीसरा प्रलयंकारी, जो होगा भारी संहारी।

भारत होगा विश्व का नेता, दुनिया का कार्यालय होगा।

भारत में न्यायालय होगा, भारत में न्यायालय होगा।

तब सतयुग दर्शन आएगा, संत राज सुख बरसाएगा।

सहस्र वर्ष तक सतयुग लागे, विश्व गुरु भारत बन जागे।“

 

श्री संत सूरदासजी-

“रे मन धीरज क्यों न धरे, सम्वत दो हजार पर ऐसा जोग परे।

पूरब, पश्चिम,  उत्तर,  दक्षिण, च हु दिशा काल फ़िरे।  

अकाल मृत्यु जग माही व्यापै, प्रजा बहुत मरे।

स्वर्ण फूल पृ‍थ्वी पर फूले पुनि जग दशा फिरे।

सूरदास यह हरि की लीला, टारे नाहि टरै।“

 

अत: अंत में सार यह है कि मनुष्य के कर्मों का ही फल है कि मानव धीरे-धीरे सात्विकता को भूलता गया और उसके विपरीत कार्यों को करता रहा तो इस तरह की महामारी का जन्म हुआ| अब समय आ गया है, इतनी बड़ी महामारी के आने के बाद मानव को इस समय सरकार के दिशानिर्देशानुसार का पालन कर अपने और अपने परिवार को इस महामारी से बचाना चाहिए| यदि मनुष्य अब भी अपने जीवन में छल-कपट को त्याग कर, सात्विकता के साथ और निश्चय कर कर- अब करोना को “करो ना” में परिवर्तित करने की कोशिश करना चाहिए| उदाहरण के लिए अब इस शब्द का प्रयोग जीवन में इस प्रकार करना चाहिए:– एक दूसरे से प्रेम करो ना, हमेशा गरीबों का सहयोग करो ना, जीवन में शान्ति और आनंद लाने की कोशिश करो ना आदि-आदि| इस तरह से यदि हर मानव अपने जीवन में निश्चय ले लें, तो निश्चित ही सब लोग प्रेम से शान्ति और आंनंद का अनुभव कर जीवनयापन कर पायेंगे| यदि हर एक मनुष्य शान्तिप्रिय होगा तो निश्चित ही एक दिन पूरे विश्व में शान्ति की स्थापना हो सकती है| मैंने अपने निज अनुभव के आधार पर कोरोना महामारी से सम्बन्धित प्रश्न के विषय में बताने की कोशिश की है|

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी       

  ||  सदगुरु, गुरु,   ज्योतिषाचार्य,   आचार्य,   पुरोहित,   पण्डित   और  ब्राह्मण    ||


सदगुरु (महापुरुष)

यदि कोई भी व्यक्ति बालक ह्रदय से; शान्ति को अपने जीवन में साक्षात रूप में लाने की ईच्छा प्रगट करे तो समय के सदगुरु उस व्यक्ति का मार्गदर्शन कर, उसे ब्रह्म ज्ञान देते हैं और वह व्यक्ति उस ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त कर; प्रतिदिन अभ्यासोप्रान्त यदि शान्ति और आनन्द का अनुभव करता है तो वह ज्ञानदाता ही समय के सदगुरु या महापुरुष कहे जाते हैं| ज्ञान की यात्रा वास्तव में स्वयं को खोजने की यात्रा है| ज्ञान लोगों के जीवन में उस आनंद को संभव बनाता है जो परिस्थियों के प्रभाव से स्वतंत्र है| ये एक विधि होती है जिसके द्वारा आप उसका अनुभव कर सकते हैं जो आपके अन्दर है| ज्ञान समस्याओं को ख़त्म नहीं करता है|  ये व्यक्ति को शान्ति का अनुभव करने में समर्थ बनाता है जो उसके अन्दर मौजूद है|  ज्ञान न तो कोई शारीरिक अथवा मानसिक समस्याओं से निदान पाने के लिए होता है और न ही ये कोई चिकित्सा का माध्यम है|  यह ब्रह्म ज्ञान जात-पात, लिंग, आर्थिक, सामाजिक स्थिति, धर्म, और रहन-सहन और रंगभेद से ऊपर उठकर संसार के सभी मानव मात्र के लिए संभव होता है|

गुरु

इस संसार में जब हम पहली स्वांस लेते हैं तो हमें नहीं पता कि गुरु शब्द क्या है, गुरु किसे कहते हैं और गुरु कौन है? धीरे-धीरे जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है तो माँ-बाप बताने लगते हैं कि कौन माँ है, कौन पिता है और कौन भाई-बहिन हैं, तब हमें कुछ समय बाद यह ज्ञान हो जाता है कि कौन-कौन है| मतलब प्रत्येक मनुष्य का पहले गुरु उसके माता-पिता होते हैं| उसके बाद जब व्यक्ति स्कूल, काँलेज आदि जाता है तो वहां  विभिन्न विषयों के को पढ़ाने वाले अलग-अलग अध्यापक होते हैं, उन्हें भी गुरु कहा जाता है| इस तरह जीवन में हमें जरुरत के मुताबिक जो भी किताबी ज्ञान देता है वह सब गुरु कहलाते हैं|

 ज्योतिषाचार्य

दिन, समय और स्थान के अनुसार ग्रहों, नक्षत्रों आदि की स्थिति की जानकारी और आकाशीय तथा पृथ्वी की घटनाओं के बीच संबंध का गणितीय गूढ़ ज्ञान जिस व्यक्ति को हो उसे ज्योतिषाचार्य या ज्योतिषविद कहा जाता है| इस ज्ञान के साथ यदि उस ज्योतिषी को ब्रह्मज्ञान भी प्राप्त हो तो उसके द्वारा दिए गए सुझाव/सलाह पर अवश्यमेव चार-चाँद लग जाते हैं, बशर्ते वह ज्योतिषाचार्य भी प्रतिदिन उस ब्रह्मज्ञान का अभ्यास करता हो, यह मेरा अनुभव है| ज्योतिष के माध्यम से हम धन बहुत कमा सकते हैं पर शान्ति और आनन्द नहीं, यह तो ब्रह्मज्ञान से ही संभव है| अत: ज्योतिषाचार्य वह व्यक्ति है जो किसी भी मनुष्य की जन्म कुंडली का अध्ययन कर उसके ग्रहों के आधार पर उसे समुचित सही दिशा और दशा का सुझाव देते हैं|

आचार्य

आचार्य उसे कहते हैं जिसे वेदों और शास्त्रों का ज्ञान हो और जो गुरुकुल में विद्यार्थियों को शिक्षा देने का कार्य करता हो। आचार्य का अर्थ यह कि जो आचार, नियमों और सिद्धातों आदि का अच्छा ज्ञाता हो और अन्य सभी को शुद्ध ज्ञान की शिक्षा देता हो। वह व्यक्ति जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो उसे आचार्य कहा जाता था। आजकल आचार्य किसी महाविद्यालय के प्रधान अधिकारी और अध्यापक को भी कहा जाता है।

पुरोहित

पुरोहित दो शब्दों से बना है ‘पर’ तथा ‘हित’, अर्थात ऐसा व्यक्ति जो दूसरों के कल्याण की चिंता करता हो। प्राचीन काल में आश्रम के प्रमुख व्यक्ति को पुरोहित कहते थे, जहां शिक्षा दी जाती थी। वैसे यज्ञ कर्म करने वाले मुख्य व्यक्ति को भी पुरोहित कहा जाता था। यह पुरोहित सभी प्रकार के संस्कार कराने के लिए भी नियुक्त होता है। प्रचीनकाल में किसी राजघराने से भी पुरोहित संबंधित होते थे अर्थात राज दरबार में पुरोहित नियुक्त होते थे, जो धर्म-कर्म कार्य के सलाहकार समीति में सम्मिलित रहते थे।

पुजारी

पूजा और पाठ से संबंधित इस शब्द का अर्थ स्वयं ही प्रदर्शित होता है। जो व्यक्ति मंदिर या अन्य किसी स्थान पर पूजा पाठ करता हो वह पुजारी होता है। किसी देवी-देवता की मूर्ति या प्रतिमा की पूजा करने वाले व्यक्ति को पुजारी कहा जाता है। 

पण्डित

पण्डित नाम का अर्थ विद्वता होता है। किसी विशेष ज्ञान में पारंगत होने वाले को ही पंडित कहते हैं। पण्डित का अर्थ होता है किसी ज्ञान विशेष में दक्ष या कुशल। पण्डित को विद्वान या निपुण भी कह सकते हैं। किसी विशेष विद्या का ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ही पण्डित होता है। प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि के बहुत बड़े ज्ञाता को पण्डित कहा जाता था। इस पण्डित को ही पाण्डेय या पाण्डे आदि कह कर पुकारते हैं। आजकल यह नाम ब्रह्मणों का उपनाम भी बन गया है। कश्मीर के ब्राह्मणों को तो कश्मीरी पंडितों के नाम से ही जाना जाता है। पण्डित की पत्नी को देशी भाषा में पण्डिताइन कहने का प्रचलन भी है।

ब्राह्मण

जो समस्त दोषों से रहित, अद्वितीय, आत्मतत्व से संपृक्त हों, वह ब्राह्मण होते हैं ! चूँकि आत्मतत्व सत्, चित्त, आनंद रूप ब्रह्म भाव से युक्त होता है, इसलिए इस ब्रह्म भाव से संपन्न मनुष्य को ही (सच्चा) ब्राह्मण कहा जा सकता है! संसार में वह सभी मनुष्य भी ब्राह्मण हैं जिनको ब्रह्म ज्ञान मिला हो और वह अपने सदगुरु के आज्ञानुसार ज्ञान-अभ्यास कर शान्ति के साथ जीवन का आनंद ले रहे हों|

जो पुरोहिताई कर अपनी जीविका चलाता है, वह ब्राह्मण नहीं, याचक है। पण्डित वह व्यक्ति है जो किसी विषय का विशेषज्ञ हो और जो कथा बांचता है वह ब्राह्मण नहीं कथावाचक है। जो ज्योतिष में पारंगत हो वह ब्राह्मण नहीं, वह ज्योतिषी होता है। इसी तरह जिसे सदगुरु द्वारा प्रदत्त ब्रम्ह ज्ञान मिला हो वही ब्राह्मण कहलाने योग्य है| अत: यदि ब्राह्मण व्यक्ति को ज्योतिष का ज्ञान भी हो तो निश्चय ही वह प्रत्येक मानवमात्र से अपनी सुझाव/सलाह का कम से कम  शुल्क लेगा| आज तक लोग सबको ही पण्डित जी या गुरु जी कह कर ही पुकारते या जानते थे| आज आपको मैंने अपने अनुभव के आधार पर सदगुरु, गुरु, ज्योतिषाचार्य, आचार्य, पुरोहित, पण्डित और ब्राह्मण में अंतर बताने की कोशिश की है|  

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी ✍                   

  || देवशयनी एकादशी (1 जुलाई   2020) ||

 

जानिए देवशयनी और इसका महत्त्व-            

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी

 

एकादशी तिथि का प्रारंभ 30 जून की शाम 07:49 बजे से हो चुका है और इसकी समाप्ति 01 जुलाई को 05:29 PM पर होगी। व्रत रखने वाले जातक आज किसी भी समय पूजा कर सकते हैं। व्रत पारण का समय 02 जुलाई की सुबह 05:00 AM से 07:40 AM तक रहेगा।

 

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियाँ होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इसी दिन से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के
अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है। 
आज देवशयनी एकादशी है| हिन्दू धर्म में आषाढ़   मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि बेहद ही महत्वपूर्ण तिथि होती है। इस तिथि के दिन   देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे आषाढ़ी एकादशी और हरिशयनी एकादशी के नाम   से भी जाना जाता है। शास्त्रानुसार श्री नारायण ने एकादशी का महत्त्व बताते हुए   कहा है कि देवताओं में श्री कृष्ण, देवियों में प्रकृति, वर्णों   में ब्राह्मण तथा वैष्णवों में भगवान शिव श्रेष्ठ हैं। उसी प्रकार व्रतों में   एकादशी व्रत श्रेष्ठ है।   भगवान विष्णु आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी   तिथि से चार माह तक पाताल लोक में निवास करते हैं लेकिन  इस वर्ष आश्विन माह अधिकमास होने के कारण  श्रीहरि विष्णु का शयनकाल पांच माह का होगा यानि 24 नवम्बर 2020 तक देवशयनी काल   रहेगा| इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा   एवं जितने भी शुभ कर्म है,  वे सभी त्याज्य होते हैं।

 

इस एकादशी का व्रत करने से समस्त सुखों की प्राप्ति  होती है और मनुष्य मृत्यु के पश्चात बैकुंठ लोक को जाता है। सायंकाल के समय पूजा स्थान पर एक चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र स्थापित करे। पीले पुष्पों से भगवान का श्रृंगार करें। इसके बाद शुद्ध घी से बने मिष्ठान्न का नैवेद्य लगाएं। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। इसके बाद पीले रंग के रेशमी गद्दों पर भगवान को शयन करवाएं।

 

भगवान को शयन करवाते समय इस मंत्र   का जाप करें:

सुप्ते  त्वयि  जगन्नाथ जमत्सुप्तं  भवेदिदम्।

विबुद्दे  त्वयि  बुद्धं    च  जगत्सर्व  चराचरम्।।

  जन्म कुंडली में मांगलिक योग  है  या नहीं?

 

जानिए मांगलिक योग और  इसका निवारण-            

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी

 

जो भी सज्जन अपने बच्चे की कुंडली पण्डितों के पास कुंडली मिलान के लिए ले जाते हैं तो पण्डित द्वारा उस बच्चे के 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में मंगल उपस्थित हो, तो उस बच्चे को मांगलिक बोला जाता है|   इस बात से माँ-बाप बहुत परेशान हो जाते हैं और यह सोचते हैं कि अब तो मुझे अपने बच्चे के लिए मांगलिक जीवनसाथी ही खोजना होगा| इसी सोच में धीरे-धीरे बच्चे की उम्र भी बढ़ती जाती है|   तो आज मैं आप सभी लोगों को मांगलिक दोष के बारे में बताने जा रहा हूँ|

जिस भी वर या कन्या की लग्न कुंडली में 1, 4, 7, 8, 12वें स्थान में मंगल होता है तो उस वर या कन्या को मांगलिक माना जाता है। इसी तरह चन्द्र से भी इन स्थानों में मंगल हो तो मांगलिक माना जाता है।

लेकिन मंगल दोष का विचार इस प्रकार किया जाता है:

  1. मंगल दोषयुक्त वर या कन्या का विवाह, मांगलिक दोष वाले कन्या या वर के साथ करने से वर-बधू का वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
  2. यदि वर या कन्या की कुंडली में जिस स्थान पर मंगल होने से मांगलिक होता है उसी स्थान पर मंगल हो और कन्या या वर की कुंडली में उसी स्थानों में शनि, मंगल, सूर्य, राहु या कोई पाप ग्रह स्थित हो तो मांगलिक दोष भंग हो जाता है, अर्थात् एक की कुंडली में मंगल दोष हो और दूसरे की कुंडली में उन्हीं स्थानों में पाप ग्रह होने से मांगलिक प्रभाव नहीं होकर, विवाह करना शुभ होता है|
  3. मेष राशि का मंगल लग्न में, वृश्चिक राशि का मंगल चौथे भाव में, मकर राशि का सातवें भाव में, कर्क राशि का मंगल आठवें भाव में हो और धनु राशि का मंगल 12वें भाव में हो तो मांगलिक दोष नहीं होता है।
  4. यदि द्वितीय भाव में चन्द्रमा और शुक्र हों या मंगल को गुरु देखता हो, केन्द्र में राहु हो अथवा केन्द्र में राहु-मंगल का योग हो तो मंगल दोष नहीं होता है।
  5. यदि बली गुरु या शुक्र लग्न में हों तो यदि मंगल 1, 4, 7, 8, 12 भावों में वक्री, नीचस्थ, अस्त अथवा शत्रु के साथ बैठा हो तो भी मांगलिक दोष नहीं होता है।
  6. यदि 1, 4, 5, 7, 9 भावों में शुभ ग्रह हों तथा 3, 6, 11 भावों में पाप ग्रह हों तो मांगलिक दोष नहीं होता है।
  7. यदि मंगल मेष, वृश्चिक तथा मकर किसी भी राशि में कुंडली में कहीं पर भी बैठा हो तो भी मांगलिक दोष नहीं होता है।
  8. यदि वर-कन्या की कुंडलियों में परस्पर राशि मैत्री हो और 27 गुण या इससे अधिक मिलते हैं तो भी मंगल दोष अविचारणीय होता है। 

वर-कन्या की कुण्डली में मंगलिक दोष एवं उसके परिहार का निर्णय अत्यन्त सावधानी पूर्वक करना चाहिए। केवल 1, 4, 7, 8, 12 भावों में मंगल को देखकर दाम्पत्य जीवन के सुखः-दुखः का निर्णय नहीं करना चाहिए|   यदि   आपको   भी   अपनी   कुंडली   में   यह   जानने   की   ईच्छा   है   कि   आप   मांगलिक   हो   या   नहीं   तो   आप   9810092532  या  8510092532   पर संपर्क   कर   सुझाव /   समाधान   ले   सकते   हैं|

खोई वस्तु मिलेगी या नहीं?

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी 

 

आज मैं आप लोगों को खोई वस्तु मिलेगी या नहीं इस सम्बन्ध में कुछ जानकारी दे रहा हूँ| हर किसी मनुष्य के जीवन में कभी न कभी ऐसा समय आता है कि आपकी महत्वपूर्ण सामान या तो चोरी हो जाता है या आप कहीं खुद रखकर भूल जाते हैं, जिस कारण आप पण्डितों के पास जाते हैं और पण्डित आपको बता देते हैं कि आपका सामान/वस्तु मिलेगी या नहीं| यदि पण्डित के कहानुसार आपका सामान मिल जाता है तो आपको यह लगता है कि पण्डित को बहुत ज्ञान है, पर ऐसा है नहीं, आप खुद भी अपने खोये हुए सामान के बारे में यह बता सकते हैं कि आपका सामान मिलेगा कि नहीं? और आपका सामान किस दिशा में मिलेगा| इसके लिए आपको पण्डितों के पास जाने की आवश्यकता नहीं है|   

मेरा यह सब बताने का उद्देश्य यह है कि यदि हर मनुष्य ज्योतिष की छोटी-छोटी जानकारी रख लें तो आपके समय और धन दोनों की वचत होगी| अब बात यह है कि आप कैसे पता लगा पायेंगे कि आपका सामान किस दिशा में है और मिलेगा कि नहीं?

 

जिस दिन आपका सामान खोया है, उस दिन कौन सा नक्षत्र है, उस नक्षत्र के नाम अनुसार से आप खोई हुई वस्तु की वस्तुस्थिति का पता लगा सकते हैं|

 

ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र होते हैं जो निम्न प्रकार हैं:

1. अश्विनी 2. भरणी 3. कृतिका 4. रोहिणी 5. मृगशिर 6. आर्द्रा 7. पुनर्वसु 8. पुष्य 9. आश्लेषा 10. मघा 11. पूर्वाफल्गुनी 12. उत्तरफाल्गुनी 13. हस्त 14. चित्रा 15. स्वाती 16. विशाखा 17. अनुराधा 18. ज्येष्ठा 19. मूला 20. पूर्वाषाढ़ा 21. उत्तराषाढा 22. श्रवण 23. धनिष्ठा 24. शतभिषा 25. पूर्वाभाद्रपद 26. उत्तरभाद्रपद 27. रेवती 28. अभिजीत

अभिजित नक्षत्र की गणना 27 नक्षत्रों में नहीं होती है क्योंकि यह नक्षत्र क्रान्ति चक्र से बाहर पड़ता है। यह मुहूर्तों आदि में इसे शुभ माना जाता है। 

 

  • यदि रोहणी, पुष्य, उत्तराफाल्गुनी, विशाखा, पूर्वाषाढ़, धनिष्ठा, रेवती नक्षत्र में से कोई भी नक्षत्र हो तो खोई हुई वस्तु शीघ्र मिल जाती है|
  • यदि अश्वनि, मृगशिरा, आश्लेषा, हस्त, अनुराधा, उत्तरा आषाढ़, शतभिषा नक्षत्र में से कोई भी नक्षत्र हो तो खोई हुई वस्तु बहुत प्रयत्न करने पर मिलती है|
  • यदि भरणी, आद्रा, मघा, चित्रा, ज्येष्ठा, अभिजीत, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में से कोई भी नक्षत्र हो तो खोई हुई वस्तु पता लगने पर भी नहीं मिलेगी|
  • यदि कृतिका, पुनर्वसु, पूर्वाफाल्गुनी, स्वाति, मूल, श्रवण, उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में से कोई भी नक्षत्र हो तो खोई हुई वस्तु नहीं मिलेगी|

मेरे पिछले 21 वर्षो के अनुभव के अनुसार यदि सचमुच में आपकी कोई वस्तु चोरी हो गयी या खो गयी हो और आप उपरोक्तानुसार परिणाम देखते हैं तो आपको पण्डितों के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी| ज्योतिष विज्ञानं बहुत सरल और सहज है, बस इसे मन से न समझकर दिल से जानने और मानने की आवश्यकता है|

                                                                                                         भक्ति और ज्योतिष                          

ज्योतिषाचार्य योगेश गहतोड़ी 

 आज का मनुष्य ज्योतिष को लेकर बहुत भ्रमित है और सोचता है कि ज्योतिष में भरोसा रखें या नहीं? इसी पशोपेश में उसका सारा जीवन उलझा रहता है| कुछ लोग ज्योतिष पर विश्वास करते ही नहीं हैं, कुछ कहते हैं सब हमारे कर्मो पर निर्भर करता है, कर्म से बड़ा कुछ नहीं है और साथ ही कुछ लोगों का यह भी मानना है कि जीवन में भक्ति करो, इससे हमारे कर्म ठीक होंगे और हमें सांसारिक दुखों से छुटकारा मिल जायेगा| आज भी हमारे भारतवर्ष में बहुत लोग हैं जो ज्योतिष पर विश्वास रखते हैं|

दोस्तो, आज मैं आपको “भक्ति और ज्योतिष” कर्म को किस तरह सही दिशा प्रदान करते हैं, इस सम्बन्ध में अपना अनुभव साझा कर रहा हूँ | मैं वर्ष 1991 से ही अपने नितप्रतिदिन के कर्मों को भक्ति के आनंद और ज्योतिष के दिशानिर्देशानुसार के मार्गदर्शन से संपन्न करता आ रहा हूँ | भक्ति और ज्योतिष अपने आप में अलग हैं| भक्ति का आनंद, ज्योतिष के बिना भी संभव है पर ज्योतिषी यदि भक्ति के आंनंद के साथ कुंडली की गणनाकर अपना सुझाव और सलाह दे तो नि:सकोच ज्योतिषीय गणना में चार-चाँद लग जाते हैं |

भक्ति से अंतरात्मा को शक्ति मिलती है और ज्योतिष हमें सांसारिक कर्मों की दिशा और दशा का ज्ञान कराता है| ज्योतिष शास्त्र पृथ्वी के चारों ओर तारों और ग्रहों की गति और स्थिति का अध्ययन है। ज्योतिष आपके भाग्य का रोडमैप है। हालाँकि, आपका भाग्य आपके हाथों में है। यह शास्त्र हमें यह बता कर मार्गदर्शन करता हैं कि क्या अच्छा है और क्या बुरा; क्या करना है और क्या नहीं करना है; कैसे करना है और कैसे नहीं करना है। “जैसे आपको जमीन का एक टुकड़ा और बोने के लिए बीज दिया जाता है। इसमें कितना प्रयास करना है, कितनी मात्रा में खाद और पानी डालना है और कैसे उपज प्राप्त करनी है यह आपका काम है। जिसे आपको अपनी ज्ञान बुद्धि, विवेक और अनुभव का उपयोग करके करना है।“

कुछ लोग ज्योतिष जन्म कुंडली प्रणाली को स्वीकार नहीं करते हैं लेकिन यह एक ज्ञात तथ्य है कि ग्रहों का प्रभाव हमारे ऊपर पड़ता है| हमारा भाग्य ताश के खेल की तरह है जहाँ आपको कुछ कार्डों की मदद से खेल में जीत हासिल करनी है, उन्हें कैसे खेलना है यह आप पर निर्भर है| आपको अच्छे कार्ड भी मिल सकते हैं लेकिन अगर आप बुरी तरह खेलते हैं तो आप हार जाएंगे और यदि आपको खराब कार्ड मिल गये और अगर आप ध्यान से खेलेंगे तो भी जीत सकते हैं।

अब दूसरा उदाहरण यदि आप शराब के नशे में गाड़ी ड्राइव कर रहे हैं और दुर्घटना हो जाती है तो क्या आप रोड मैप को दोष देंगे! महाभारत में भी भगवान श्री कृष्ण जी ने अर्जुन को और दुर्योधन को भी सलाह दी थी। एक ने सुनी और दूसरी ने नहीं! परिणाम आपको मालूम ही है कि अंत में क्या हुआ| दोस्तो, कर्म से भाग्य जरुर बनता है पर कर्म को सही दिशा और दशा का ज्ञान भक्ति और ज्योतिष ही देता है|

इस पृथ्वी पर मानव अस्तित्व निरंतर उतार-चढ़ाव से भरा है और हम में से हर कोई जीवन के सभी क्षेत्रों में किसी भी कीमत पर खुशी पाने का प्रयास करता है; यह शिक्षा, विवाह, पेशा या परिवार आदि हो। कभी-कभी जब हमारी इच्छाएँ पूरी नहीं होती हैं तो हम असंतुष्ट और निराश हो जाते हैं। उस क्षण में हमें उन कठिन परिस्थितियों को दूर करने के लिए व्यावहारिक मदद की आवश्यकता है।

हम अपनी कठिनाइयों और परीक्षण के समय को दूर करने के लिए मार्गदर्शन करने के लिए एक अनुभवी और विशिष्ट व्यक्तित्व के रूप में आशा की एक किरण की खोज करते हैं। ज्योतिष एक ऐसी प्रसिद्ध सेवा है जो प्रत्येक मानव अस्तित्व को संतुष्ट करने के लिए सबसे उपयुक्त मार्गदर्शन प्रदान करती है। यदि आपको ज्योतिष से सम्बंधित अधिक जानकारी, सलाह या सुझाव की आवश्यकता हो तो आप 9810092532 पर सम्पर्क कर सकते हैं|


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