मुहूर्त परिचय
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुभ मुहूर्त निकालने के लिए तिथि, वार, नक्षत्र, योग, करण, नवग्रहों की स्थिति, मलमास, अधिकमास, शुक्र और गुरु अस्त, अशुभ योग, भद्रा, शुभ लग्न, शुभ योग तथा राहूकाल, चौघड़ियां, होरा आदि के योग से शुभ मुहूर्त निकाला जाता है| कौन नहीं चाहता कि जो भी काम हम करें उसमें सफलता हासिल हो और उसके सकारात्मक परिणाम मिलें। प्रत्येक मनुष्य जब भी किसी कार्य की शुरुआत करने के बारे में सोचता है तो समय और परिस्थितियों का आकलन करता है। जिस उद्देश्य के साथ काम को अंजाम दिया जा रहा है उसे हासिल करने में सफलता मिलेगी या नहीं? शुभ मुहूर्त भी कुछ ऐसा ही है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार ग्रहों की चाल हमारे हर अच्छे-बुरे निर्णय को प्रभावित करती है। कई बार आप अच्छे के लिये कोई शुरुआत करते हैं लेकिन उसके परिणाम नकारात्मक मिलते हैं। ज्योतिष शास्त्र इस सबके पीछे ग्रहों का अनुकूल न होना मानता है इसलिये ज्योतिषाचार्य किसी भी कार्य को शुभ मुहूर्त में करने की सलाह देते हैं।
मानव जीवन में जन्म से मृत्यु तक कुल 16 संस्कार (गर्भाधान, पुंसवन, सीमंतोन्नायन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म, विद्यारंभ, कर्णवेध, यज्ञोपवीत, वेदारंभ, केशांत, समावर्तन, विवाह और अन्त्येष्टि यह 16 संस्कार होते हैं| समयाभाव या ज्ञानाभाव के कारण आज का मानव सभी संस्कारों को नहीं कर पाते हैं| मुख्यतः मनुष्य कुछ ही प्रमुख संस्कारों के लिए मुहूर्त निकलवाने के लिए ज्योतिषाचार्यों के पास जाते हैं| इसके आलावा भी मनुष्य के जीवन में कुछ और कार्यकलापों के लिए भी मुहूर्त निकलवाने की आवश्यकता होती है जैसे विद्यारंभ, व्यवसाय, नौकरी, यात्रा, गृह प्रवेश, वाहन/भूमि क्रय, गृहारंभ, आप्रेशन आदि मुहूर्तों के लिए विद्वान ज्योतिषाचार्यों से संपर्क कर सलाह परामर्श लेते हैं|
मुहूर्त को लेकर अलग-अलग तर्क और धारणाओं के बीच, हमें चाहिए कि हम स्वयं जीवन में इसकी प्रासंगिकता और महत्व का अवलोकन करें। मुहूर्त की आवश्यकता क्यों होती है ? दरअसल मुहूर्त एक विचार है, जो इस धारणा का प्रतीक है कि एक तय समय और तिथि पर शुरू होने वाला कार्य शुभ व मंगलकारी होगा और जीवन में खुशहाली लेकर आएगा। ब्रह्मांड में होने वाली खगोलीय घटनाओं का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। क्योंकि विभिन्न ग्रहों की चाल के फलस्वरूप जीवन में परिवर्तन आते हैं। ये बदलाव हमें अच्छे और बुरे समय का आभास कराते हैं। इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम तिथि, वार, नक्षत्र, योग और करण आदि की गणना करके कोई कार्य आरंभ करें, जो शुभ फल देने वाला साबित हो।
शास्त्रों के अनुसार शुभ समय में कार्य करने से सफलता प्राप्ति की सम्भावना बढ़ जाती है। मुहूर्त का मतलब है किसी शुभ और मांगलिक कार्य को शुरू करने के लिए एक निश्चित समय व तिथि का निर्धारण करना। अगर हम सरल शब्दों में इसे परिभाषित करें तो, किसी भी कार्य विशेष के लिए पंचांग के माध्यम से निश्चित की गई समयावधि को ‘मुहूर्त’ कहा जाता है। वैसे तो शुभ मुहूर्त कार्य की प्रकृति और कार्यारंभ करने वाले जातक की कुंडली में ग्रहों की दशा के अनुसार ही तय होता है लेकिन रोजर्मरा के जीवन में प्रतिदिन कुछ ऐसे शुभ-अशुभ मुहूर्त होते हैं जिनकी जानकारी के बाद हर दिन, हर कार्य के लिये ज्योतिषीय परामर्श की आवश्यकता नहीं पड़ती।
आज हम आपको नीचे कुछ प्रमुख शुभ मुहूर्तों की तारीख, दिन, नक्षत्र और तिथि दे रहे हैं, जिससे आपको अपने जीवन में शुभ कार्यों को करने में सहयोग तो मिलेगा, साथ ही हमारी यह भी सलाह है कि आप एक बार विद्वान ज्योतिषी से भी सलाह अवश्य ले लें, क्योंकि शुभ मुहूर्त के साथ आपको यह जानना आवश्यक है कि इस शुभ मुहूर्त की अवधि क्या है, यह जानकारी आपको विद्वान ज्योतिषी ही दे सकता है| आप यदि चाहें तो शुभ मुहूर्त हेतु हमसे भी संपर्क कर सकते हैं|
नामकरण मुहूर्त
नामकरण संस्कार के नाम से ही विदित होता है कि इसमें बालक का नाम रखा जाता है। शिशु के जन्म के बाद 11वें दिन नामकरण संस्कार किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार बच्चे का नाम तय किया जाता है। बहुत से लोगों अपने बच्चे का नाम कुछ भी रख देते हैं जो कि गलत है। उसकी मानसिकता और उसके भविष्य पर इसका असर पड़ता है। जैसे अच्छे कपड़े पहने से व्यक्तित्व में निखार आता है उसी तरह अच्छा और सारगर्भित नाम रखने से संपूर्ण जीवन पर उसका प्रभाव पड़ता है। ध्यान रखने की बात यह है कि बालक का नाम ऐसा रखें कि घर और बाहर उसे उसी नाम से पुकारा या जाना जाए।
हिन्दू धर्म के अनुसार जन्म से मृत्यु तक 16 संस्कार होते है। नामकरण संस्कार, इन्ही सोलह संस्कारो में से एक है। हिन्दू धर्म में नामकरण संस्कार का विशेष महत्व है। पण्डित को घर पर बुलवाकर ग्रह दशा, तिथि, राशि व नक्षत्र देख कर नामकरण संस्कार करवाना चाहिए। सही विधि और सही मुहूर्त पर नामकरण करवाने से शिशु के जीवन में आने वाले सभी कष्ट दूर होते है।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और शुक्ल पक्ष की 2, 3, 7, 10, 11, 13 तिथियां।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार (सूतकान्त के बाद)।
शुभ नक्षत्र- अश्वनी, रोहणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती।
मुंडन मुहूर्त
हिन्दू धर्म में जातक के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु तक 16 संस्कार किये जाते हैं। मुंडन संस्कार भी इन्ही संस्कारों में से एक है। हमारे आचार्यो ने बालक के पहले, तीसरे या पांचवें वर्ष में इस संस्कार को करने का विधान बताया है। मुंडन संस्कार का अभिप्राय है कि जन्म के समय उत्पन्न अपवित्र बालों को हटाकर बालक को प्रखर बनाना है। नौ माह तक गर्भ में रहने के कारण कई दूषित किटाणु उसके बालों में रहते हैं। मुंडन संस्कार से इन दोषों का सफाया होता है। मुंडन कराने से बच्चे का बल, बुद्धि और आयु बढ़ती है। जब बच्चे का पहली बार मुंडन कराते हैं तो उसे पूरे विधि-विधान और शुभ मुहूर्त में अवश्य करवाना चाहिए। अलग-अलग क्षेत्रों में मुंडन को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। मुंडन को चौल मुंडन, चौल केशान्त मुंडन और चूड़ाकरण संस्कार भी कहा जाता है|
शुभ मास- जन्म से 1, 3, 5 आदि वर्षों में बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ (20 जून तक) तथा माघ और फाल्गुन।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10,
11, 13, 15 तिथियां ।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- अश्वनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्त, चित्रा, स्वाति, ज्येष्ठा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, रेवती लेकिन जन्मनक्षत्र में मुंडन नहीं करना चाहिए।
विद्यारम्भ मुहूर्त
हिन्दू धर्म के सोलह संस्कारों में से विद्यारंभ संस्कार को बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। इसी दिन से बच्चे को औपचारिक रूप से शिक्षा मिलना आरंभ हो जाता है। विद्यारंभ संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसमें “विद्या” का अर्थ है ज्ञान और “आरंभ” का मतलब शुरुआत। ऐसी मान्यता है कि, जब बच्चे का शुभ मुहूर्त में विद्यारंभ संस्कार संपन्न करवाया जाता है तो इससे उसे ज्ञान, बुद्धि और अच्छे संस्कारों की प्राप्ति होती है।
विद्यारम्भ संस्कार के क्रम के बारे में हमारे आचार्यो में मतभिन्नता है। कुछ आचार्यो का मत है कि अन्नप्राशन के बाद विद्यारम्भ संस्कार होना चाहिये तो कुछ चूड़ाकर्म के बाद इस संस्कार को उपयुक्त मानते हैं। मेरी राय में अन्नप्राशन के बाद ही शिशु बोलना शुरू करता है। इसलिये अन्नप्राशन के बाद ही विद्यारम्भ संस्कार उपयुक्त लगता है। विद्यारम्भ का अभिप्राय बालक को शिक्षा के प्रारम्भिक स्तर से परिचित कराना है।
प्राचीन काल में जब गुरुकुल की परम्परा थी तो बालक को वेदाध्ययन के लिये भेजने से पहले घर में अक्षर बोध कराया जाता था। माँ-बाप तथा गुरुजन पहले उसे मौखिक रूप से श्लोक, पौराणिक कथायें आदि का अभ्यास करा दिया करते थे ताकि गुरुकुल में कठिनाई न हो। हमारा शास्त्र विद्यानुरागी है। शास्त्र की उक्ति है “सा विद्या या विमुक्तये” अर्थात् विद्या वही है जो मुक्ति दिला सके। विद्या अथवा ज्ञान ही मनुष्य की आत्मिक उन्नति का साधन है। शुभ मुहूर्त में ही विद्यारम्भ संस्कार करना चाहिये।
शुभ मास- जन्म से पांचवे व सातवें वर्ष के उपरान्त माघ, फाल्गुन, चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ।
शुभ तिथियां – शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 11, 12,13, 14, 15 तिथियां ।
शुभ वार- रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- अश्वनी, रोहणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा, पूर्वाषाढ़, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद।
कर्णवेध मुहूर्त
कर्णवेध संस्कार का अर्थ होता है कान को छेदना। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक को कर्णवेध संस्कार पांच लाभ हैं, एक- आभूषण पहनने के लिए। दूसरा- कान छेदने से ज्योतिषानुसार राहु और केतु के बुरे प्रभाव बंद हो जाते हैं। तीसरा इसे एक्यूपंक्चर होता है, जिससे मस्तिष्क तक जाने वाली नसों में रक्त का प्रवाह ठीक होने लगता है। चौथा इससे श्रवण शक्ति बढ़ती है और कई रोगों की रोकथाम हो जाती है। पांचवां इससे यौन इंद्रियां पुष्ट होती है।
कर्णवेध संस्कार जनेऊ से पूर्व ही करना आवश्यक होता है। इस संस्कार को 6 माह से लेकर 16 वें माह तक या 3, 5 आदि विषम वर्षों में किया जाना चाहिए। माना जाता है, सूर्य की किरणों कानों के छिद्र से प्रवेश कर शिशु को तेजस्वी बनाती हैं। शास्त्रों के अनुसार कर्णवेध रहित पुरुष को श्राद्ध का अधिकारी नहीं माना जाता है। मानव जीवन में इस संस्कार को महत्वपूर्ण माना जाता है इसलिए कर्णवेध करने से पूर्व शुभ मुहूर्त पर विचार किया जाता है।
कर्णवेध संस्कार (ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य) का साही के काँटे से भी करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है। शुभ समय में, पवित्र स्थान पर बैठकर देवताओं का पूजन करने के पश्चात सूर्य के सम्मुख बालक के कानों को मंत्र द्धारा अभिंमत्रित कर कान छिदवाने चाहिए|
शुभ मास- मुख्यतौर से कार्तिक, पौष, चैत्र व फाल्गुन मास कर्णवेध संस्कार के लिए शुभ माने जाते हैं।
शुभ तिथियां- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12,13 और पूर्णिमा तिथियां।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- श्रवण, धनिष्ठा, मृगशिरा, पुनर्वसु, रेवती, चित्रा, अनुराधा, हस्त, अश्वनी, पुष्य, अभिजीत।
उपनयन मुहूर्त (यज्ञोपवीत)
उपनयन को यज्ञोपवीत या जनेऊ संस्कार भी कहते हैं। उपनयन अथवा यज्ञोपवीत बौद्धिक विकास के लिये सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। हिन्दू धर्म में सोलह संस्कारों में उपनयन संस्कार को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है जो कर्णभेद संस्कार के बाद किया जाता है। पुरुष के जीवन में इस संस्कार का बहुत महत्व होता है। इस संस्कार में बालक को जनेऊ पहनाया जाता है।
उपनयन संस्कार को नौवे संस्कार कर्णवेध के बाद ही करने के लिए कहा जाता है, मगर शास्त्रानुसार ब्राह्म्ण के बच्चे का उपनयन संस्कार 8वें साल में, क्षत्रिय का 11वें और वैश्य का 12वें साल में करना उचित माना जाता है। लग्न से नौवें, पांचवे, पहले, चौथे, सातवें, दसवें स्थान में शुभग्रह के रहने पर उपनयन संस्कार करना शुभ होता है।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 10, 11, 12 तिथियां ।
शुभ वार- रविवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार
शुभ नक्षत्र- मृगशिरा, आर्द्रा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाति, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, अश्विनी, मूल, पूर्वाभाद्रपद, पूर्वाषाढ़, पूर्वाफाल्गुनी, पुष्य, अश्लेषा
सगाई मुहूर्त
वर और कन्या दोनों के जीवन में सगाई को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। सगाई लड़का-लड़की की शादी से कुछ दिन या कुछ महीनों पहले की जाती है। आम बोलचाल में इसे रोका भी कहते है। विवाह से पूर्व की जाने वाली इस रस्म को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्यूंकि सगाई के बाद ही शादी की बाकी रस्मे की जाती है इसीलिए सगाई शुभ मुहूर्त में की जाती है। शास्त्रों के अनुसार, विवाह और उससे संबंधित सभी कार्यों को शुभ मुहूर्त में किया जाना अनिवार्य होता है। ताकि भविष्य में दाम्पत्य जीवन पर असर ना पड़े और जोड़ा सुखी रहे।
शुभ मास- बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, आश्विन, मार्गशीर्ष, माघ तथा फाल्गुन।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 7, 8, 10, 11, 12, 13, 15 तिथियां।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- अश्वनी, कृतिका, रोहिणी, मृगशिरा, मघा, पूर्वाषाढ़, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, हस्त, चित्रा, स्वाति, पुष्य, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती।
विवाह मुहूर्त
हिन्दू परम्पराओं में मानव के गर्भ में जाने से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार किये जाते हैं। जिनमे हर संस्कार का अपना महत्व होता है। विवाह संस्कार भी इन्ही सोलह संस्कारों में से एक है, जो पन्द्रहवां संस्कार है। स्त्री-पुरुष के जीवन में यह संस्कार बहुत महत्वपूर्ण होता है।
शास्त्रों के अनुसार, यज्ञोपवीत से समावर्तन संस्कार तक मानव को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना होता है। वेदानुसार, जब युवक में सामाजिक परंपराएं निर्वाह करने की क्षमता और परिपक्वता आ जाती है तो उसे गृर्हस्थ्य जीवन में प्रवेश कराया जाता था और परिणय सूत्र में बाँध दिया जाता है। विवाह के लिए एक निश्चित तारीख तय की जाती है जिसे वर-वधू की कुंडली मिलान के पश्चात् निकाला जाता है। विवाह में जितना महत्व उससे जुड़े रीती-रिवाजों का होता है उतना ही महत्व शुभ मुहूर्त का होता है।
शुभ मास- बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन तथा कार्तिक।
शुभ तिथियां- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 7, 8, 9, 10, 11, 12, 13, 15 तिथियां ।
शुभ वार- रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- रोहिणी, मृगशिरा, मघा, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, मूल, रेवती।
वाहन क्रय मुहूर्त
नया वाहन खरीदते समय मुहूर्त निकलवाना बहुत जरुरी होता है। बिना मुहूर्त देखे किसी भी दिन गाड़ी या वाहन खरीदने से उसके मालिक या उससे जुड़े लोगों को हानि होने की संभावना बनी रहती है। अशुभ मुहूर्त में गाड़ी खरीदने से नुकसान की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं इसलिए हमेशा शुभ मुहूर्त में ही नया वाहन खरीदें।
राहु काल में कार, बाइक या अन्य वाहन और मकान, आभूषण आदि भूलकर भी नहीं खरीदना चाहिए। इस अवधि में वाहन की खरीदी और बिक्री दोनों से बचना चाहिए। पंचक के दौरान भी नया वाहन नहीं खरीदना चाहिए। शनिवार के दिन भूलकर भी नया वाहन नहीं खरीदना चाहिए। नए वाहन की पूजा करने के बाद उस पर काला कपड़ा बांध दें, नजर नहीं लगेगी। गाड़ी लाने के बाद टायर के नीचे नींबू रखकर गाड़ी चलाना शुरू करें, इससे बुरी नजर नहीं लगेगी। नया वाहन लाने के बाद थोड़े दिन तक ढक कर रखें।
शुभ मास- सभी महिने।
शुभ तिथियां -कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13, 15 तिथियां।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- अश्वनी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, पूर्वाषाढ़, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, धनिष्ठा, रेवती।
व्यापार मुहूर्त
शास्त्रों के नियमानुसार, कोई भी नया व्यापार आरंभ करने से पूर्व शुभ मुहूर्त पर देख लेना चाहिए। माना जाता है शुभ मुहूर्त में व्यापार आरंभ करने से उसमे बरकत और मुनाफा होता है। कोई भी व्यक्ति नया बिज़नेस शुरू करने से पहले यही सोचता है की व्यापार खूब चलें, उसमे कोई परेशानी नहीं आए। लेकिन कई बार व्यापार में सफलता नहीं मिल पाती जिसके कारण बार-बार हानि होती रहती है और जल्द ही व्यापार बंद करना पड़ता है।
हमारे व्यापार पर ही हमारा जीवन व हमारे परिवार का जीवन निर्भर करता है। ऐसे में इतने महत्वपूर्ण कार्य को शुभ मुहूर्त के अनुसार विद्वान ज्योतिषाचार्य की सलाह से ही करना चाहिए।
शुभ मास- माघ, फाल्गुन, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, मार्गशीर्ष।
शुभ तिथियां- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 12, 13 तिथियां।
शुभ वार- रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- अश्वनी, रोहिणी, मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, हस्त, चित्रा, अनुराधा, मूल, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, रेवती।
नौकरी प्रारंभ मुहूर्त
मंगलवार और शनिवार को छोड़कर शेष सभी दिन नौकरी ज्वाइन करने के लिए अच्छा माना जाता है। सेना तथा पुलिस की नौकरी में मंगलवार भी शुभ माना गया है। शुभ मुहूर्त में सरकारी नौकरी शुरू करने से बाधायें कम आती हैं व आत्मसंतुष्टि अधिक रहती है। इसके लिये नौकरी के पहले दिन का नक्षत्र हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, मृगशिरा, रेवती, चित्रा या अनुराधा होना चाहिये। तिथियों में चतुर्थी, नवमी व चर्तुदशी को छोडकर कोई भी तिथि हो सकती है। सोमवार, बुधवार, गुरूवार या शुक्रवार को सरकारी नौकरी शुरू करनी चाहिये। मुहूर्त कुंडली में गुरू सातवें भाव में हो, शनि छटे भाव में, सूर्य या मंगल तीसरे, दसवें या एकादश भाव में हो तो शुभ रहता है। जन्म राशि से 4, 8 या 12वें भाव के चंद्रमा से बचना चाहिये। इसके लिए आपको ज्योतिषाचार्य की सलाह लेनी अत्यंतावश्यक चाहिए|
शुभ मास- माघ, फाल्गुन, चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ।
शुभ तिथियां- शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 15 तिथियां ।
शुभ वार- रविवार, सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- हस्त, अश्विनी, पुष्य, अभिजीत, मृगशिरा, रेवती, चित्रा या अनुराधा (नौकरी के पहले दिन का नक्षत्र)
गृह निर्माण मुहूर्त
गृह निर्माण करना, भूमि पूजन करना या शिलान्यास करना किसी भी मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण काम होता है। जिस स्थान पर आप रहने जा रहे हैं, उस स्थान का चयन करते वक्त भी सही जानकारी रखना जरुरी होता है। जिस भूमि पर आप मकान बनाने जा रहे हैं, वह कितनी फलदायी है, यह जानना बहुत जरुरी है।
इन सभी में से सबसे ज्यादा जरुरी ये है जिस स्थान पर आप गृह निर्माण करने जा आरहे है वो उचित मुहूर्त में शुरू हो, ताकि गृह निर्माण बिना किसी रूकावट के हो सके। जब आप उस मकान में रहने जाए, तो परिवार के किसी भी सदस्य को हानि न पहुंचे और उस मकान में रहने वाले लोगों को हमेशा खुशियां, सफलता और मान सम्मान मिलता रहे और घर में नए-नए मांगलिक कार्य संपन्न होते रहें|
जिस भूमि पर आप गृह निर्माण करने जा रहे हैं आपको यह मालूम होना चाहिए के वह भूमि उस समय सोई तो नहीं है, जिसे ज्योतिष की भाषा में सुप्तभूमि कहते हैं यानि सुप्तावस्था का मतलब जब सूर्य किसी भी राशि में प्रवेश करता है उस समय जो भी नक्षत्र हो, उस नक्षत्र से 5, 7, 9, 12, 19, 26वें नक्षत्र में भूमि सोयी रहती है, यदि जिस दिन आप शिलान्यास करने जा रहे हैं यदि वह भूमि सुप्तावस्था में हो तो शिलान्यास निषेध होता है।
इसके साथ ही आपको इस बात की जानकारी होनी अति आवश्यकीय है कि जिस भूमि पर आप गृह निर्माण करने जा रहे हैं वह धरती उस दिन रजस्वला तो नहीं है, जिस तरह भूमि सो जाती है इसी तरह हर महीने एक सूर्य संक्रांति पड़ती है, इस सूर्य संक्रांति को यदि हम एक मानकर गिनें तो 1, 5, 10, 11, 16, 18, 19 दिन में भू रजस्वला होती हैं यानि इन दिनों में शिल्यान्यास निषेध होता है।
गृह निर्माण के लिए सही तिथि का होना जरुरी है नक्षत्र का होना और वार का होना जरुरी है , इसके बाद आपकी राशि और लगन क्या है। लगन और राषि के अनुसार ही नक्षत्र और तिथि का चयन करना चाहिए। फिर भी मुहूर्त चक्र के अनुसार निम्नलिखित नक्षत्र , तिथि , माह और शुभ लगन में करने चाहिए।
शुभ मास- वैशाख, श्रावण, माघ, पौष, फाल्गुन।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13, 15 तिथियां ।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार, शनिवार।
शुभ नक्षत्र- मृगशिरा, पुष्य, अनुराधा, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़, धनिष्ठा, शतभिषा, चित्रा, हस्त, रोहिणी, रेवती।
गृह निर्माण / नींव पूजा / भूमि पूजन मुहूर्त हमेशा गृह स्वामी के नाम व् जन्मतिथि के अनुसार निकाला जाता है। अगर आप भी गृह निर्माण / नींव पूजा के लिए शुभ मुहूर्त निकलवाना चाहते हैं तो सम्पर्क कर सकते हैं|
गृह प्रवेश मुहूर्त
नूतन गृह प्रवेश के लिए सही मुहूर्त का होना बहुत जरुरी होता है। शास्त्रों के अनुसार, बिना मुहूर्त और पंचांग देखे गृह प्रवेश करना या नए घर का उद्घाटन करवाना शुभ नहीं होता। गृह प्रवेश की पूजा भी शुभ और उचित मुहूर्त में ही करना अनिवार्य बताया गया है, क्योंकि गृह प्रवेश करने का एक उचित समय होता है और हमेशा उसी में गृह प्रवेश करना चाहिए। शास्त्रों और हिन्दू पंचांग के अनुसार, गृह प्रवेश करने के लिए या नए घर में पूजा करने के लिए सही समय होना जरुरी होता है। पूरे साल में कुछ ही योग होते हैं जिनमे गृह प्रवेश करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
गृह प्रवेश करने के लिए केवल समय ही नहीं, अपितु माह, नक्षत्र, तिथि, वार और लग्न शुद्धि का ध्यान रखना भी बहुत जरुरी होता है। माना जाता है, सही मुहूर्त में किया गया गृह प्रवेश परिवार के लिए सुख-समृद्धि, प्रसन्नता-ऐश्वर्य और शांति लाता है और घर में हमेशा सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है। यूँ तो ऐसे कई योग होते हैं जिनमे गृह प्रवेश करना अच्छा होता है परन्तु उनमे से कुछ विशेष होते हैं जिनमे गृह प्रवेश करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
जब कोई व्यक्ति अपने नए घर में पहली बार विधिवत रूप से प्रवेश करता है। यह क्षण उस व्यक्ति के लिए बहुत ही शुभ और प्रफुल्लित भरा होता है। यदि किसी व्यक्ति के घर का सपना पूरा हो जाए तो यह उस व्यक्ति के जीवन की सबसे बड़ी ख़ुशियों में से एक होता है और वह ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता कि नए घर में उसे कोई परेशानी या विपदा आए। इसलिए उस व्यक्ति के लिए गृह प्रवेश का शुभ मुहूर्त का विचार आवश्यक है। शास्त्रों के अनुसार यदि शुभ मुहूर्त में गृह प्रवेश किया जाए तो घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।
शुभ मास- बैशाख, ज्येष्ठ, सावन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, माघ तथा फाल्गुन।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 11, 12, 13 तिथियां ।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार, शनिवार।
शुभ नक्षत्र- उत्तराभाद्रपद, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, रोहिणी, मृगशिरा, चित्रा, अनुराधा, रेवती।
सुप्तभूमि- सूर्य जब किसी भी राशि में प्रवेश जिस नक्षत्र में करता है, उस नक्षत्र से 5, 7, 9, 12, 19, 26वें नक्षत्र में भूमि सोयी रहती है अतः शिलान्यास निषेध है।
भू-रजस्वला- सूर्य जब किसी भी राशि में प्रवेश जिस नक्षत्र में करता है, उस दिन से 1, 5, 10, 11, 16, 18, 19वें दिन तक भूमि रजस्वला होती है। अतः इन दिनों में शिल्यान्यास निषेध है।
किसी विद्वान ज्योतिषाचार्य से सलाह परामर्श करके ही नए घर में प्रवेश करना चाहिए| आप हमसे भी इस सम्बन्ध में उचित सलाह हेतु सम्पर्क कर सकते हैं|
यात्रा मुहूर्त
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा और शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 7, 10, 11, 13 तिथियां ।
दिशा शूल- पूर्व दिशा में सोमवार और शनिवार को, पश्चिम दिशा में रविवार और शुक्रवार को, उत्तर दिशा को मंगलवार और बुधवार को तथा दक्षिण को गुरुवार में यात्रा करना निषेध है। अतः इन वारों में यात्रा नहीं करनी चाहिए। अत्यावश्यक होने पर रविवार को दलिया एवं घी खाकर, सोमवार को दर्पण देखकर या दूध पीकर, मंगलवार को गुड़ खाकर, बुधवार को धनिया या तिल खाकर, गुरुवार को दही खाकर, शुक्रवार को जौं खाकर या दूध पीकर और शनिवार को अदरक या उड़द खाकर प्रस्थान किया जा सकता है।
शुभ नक्षत्र- अश्विनी, मृगशिरा, पुर्नवसु, पुष्य, अनुराधा, हस्त, श्रवण, धनिष्ठा तथा रेवती।
चन्द्रवास- यदि चन्द्रमा मेष, सिंह या धनु राशि में हो तो पूर्व दिशा की यात्रा, चन्द्रमा मिथुन, तुला या कुंभ राशि में हो तो पश्चिम दिशा की यात्रा, चन्द्रमा कर्क, वृश्चिक, या मीन राशि में हो तो उत्तर दिशा की यात्रा तथा चन्द्रमा वृष, कन्या या मकर राशि में हो तो दक्षिण दिशा की यात्रा अति शुभ होती है।
चुनाव में खड़े होने का मुहूर्त
ज्योतिषीय गणना के आधार पर निकाले गए शुभ मुहूर्तों में ही टिकट के लिए आवेदन, नामांकन आदि करना चाहिए। ज्योतिष के अनुसार नामांकन प्रक्रिया यदि शुभ मुहूर्त एवं शुभ काल में किया जाए तो चुनाव में जीतने की संभावना काफी प्रबल हो जाती है। ज्योतिष नियम यह है कि यदि प्रश्न कुंडली में तृतीय भाव का उप नक्षत्र स्वामी लाभ स्थान में हो तो निश्चय ही चुनाव लड़ने के लिए पार्टी से टिकट मिलने के साथ चुनाव में सफलता मिलती है। चुनाव नामांकन में राहु, सूर्य एवं गुरु के अच्छे भाव में उपस्थिति काफी महत्वपूर्ण होती है। व्यक्ति की कुंडली में चल रही दशा-अंतर्दशा में राहु, गुरु एवं शनि की स्थिति का अच्छा होना भी चुनाव में जीत मिलने में अति सहायक होता है| अत: ज्योतिषी को प्रश्न कुंडली और जन्म कुंडली का तृतीय भाव और में गुरु, सूर्य, शनि, राहू, केतु तथा दशाओं को ध्यान में रखते हुए, शुभ मुहूर्त निकलना चाहिए|
शुभ मास- बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन तथा कार्तिक।
शुभ तिथियां- कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 9, 10, 12, 15 तिथियां।
शुभ वार- सोमवार, बुधवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र-अश्विनी, रोहिणी, पुर्नवसु, पुष्य, उत्तराषाढ़, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराभाद्रपद, हस्त, अनुराधा, श्रवण, धनिष्ठा, रेवती।
भूमि खरीदने का मुहूर्त
शुभ मास- बैशाख, ज्येष्ठ, श्रावण, भाद्रपद, माघ तथा फाल्गुन।
शुभ तिथियां – कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तथा शुक्ल पक्ष की 5, 6, 10, 11, 15 तिथियां ।
शुभ वार- मंगलवार, गुरुवार, शुक्रवार।
शुभ नक्षत्र- मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, मघा, विशाखा, पूर्वाषाढ़, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाभाद्रपद, मूला, रेवती|
आप्रेशन कराने का मुहूर्त
शुभ मास- बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन तथा कार्तिक।
शुभ तिथियां – शुक्ल पक्ष की 2, 3, 5, 6, 7, 10, 12, 13 तिथियां ।
शुभ वार- रविवार, मंगलवार, गुरुवार।
शुभ नक्षत्र- अश्वनि, रोहिणी, मृगशिरा, हस्त, श्रवण, विशाखा।
समयाभाव में मुहूर्त विचार
संसार का प्रत्येक मनुष्य सुख-दुःख, हानि-लाभ, शुभ-अशुभ और आपत्ति-विपत्ति के साथ ही जीवन का निर्वाहन करता है| ज्योतिष के अनुसार शुभ कार्य के लिए शुभ मुहूर्त का होना अत्यावश्यक है, शुभ मुहूर्त में ही शुभ कार्य करने चाहिए, लेकिन मनुष्य जीवन में कभी-कभी शुभ कार्यों को किसी विशेष परिस्थिति कारण अचानक ही सम्पन्न करने की जरुरत पड़ती हैं|
यदि आपके जीवन में भी कभी इस तरह का कोई निर्णय लेना हो आप विद्वान ज्योतिषाचार्य से संपर्क करें, यदि आपको कोई ज्योतिषी ना मिले तो आप 9810092532 पर कॉल करके संपर्क कर सकते हैं, हम आपको चौघड़िया और होरा मुहूर्तों की मदद से आपके शुभ कार्यों के लिए शुभ मुहूर्त निकालकर अपना समुचित सुझाव/सलाह दे सकते हैं, जिससे आपका कार्य शुभ मुहूर्त में सम्पन्न होगा और आपको शुभ फल की प्राप्ति होगी|
मैं आपको इस मुहूर्त का उदाहरण इस प्रकार दे रहा हूँ- कुछ समय पहले की बात है हमारे एक मित्र बहुत अधिक बीमार हो गए थे| उनको हमें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा| उनका स्वास्थ्य दिनों-दिन ख़राब होते जा रहा था, उन्होंने हमसे एक दिन बोला कि “मेरे पुत्र का जनेऊ करा दो ताकि वह मेरी अन्तिम यात्रा के कार्यकलापों को अपने हाथों कर सके क्योंकि हिन्दू धर्म में बिना उपनयन संस्कार के माता-पिता की अन्तिम यात्रा समापन कार्यक्रम नहीं किया जा सकता है| उस समय हमने चौघड़िया और होरा मुहूर्त का सहारा लिया और अपने ही घर में उनके बच्चे का उपनयन संस्कार (जनेऊ) किया| अन्ततोगत्वा दो दिन के बाद ही हमारे मित्र ने शरीर त्याग दिया और वह स्वर्ग सिधार गए| तो इस प्रकार उनकी अन्तिम इच्छा भी पूरी हुई और शुभ कर्म भी शुभ मुहूर्त में सम्पन्न हुआ|
इस तरह के विपरीत समय या समयाभाव में विद्वान ज्योतिषी से अवश्य सलाह / सुझाव लेना चाहिए, यदि आपको कोई भी ज्योतिषी ना मिले या आपके पास समय की कमी हो तो आप निम्न चौघड़िया और होरा मुहूर्तों के सहयोग से अपने शुभ कार्य को संपन्न कर सकते हैं|
चौघड़िया मुहूर्त
दिनमान और रात्रिमान को बराबर आठ-आठ भागों में बांटने से जो समय निकलता उसे चौघड़िया मुहूर्त कहते हैं। प्रत्येक चौघड़िया मुहूर्त 1:30 घंटे से कम या अधिक भी हो सकता है, क्योकि कभी दिन बड़े होते हैं और कभी रातें। सूर्योदय से सूर्यास्त तक का समय दिनमान तथा सूर्यास्त से अगले दिन के सूर्योदय तक का समय रात्रि मान कहलाता है। यदि शीघ्रता में कोई मुहूर्त न मिलता हो तो तथा अचानक यात्रा करनी पड़े या अन्य कोई शुभ काम करना हो तो चौघड़िया मुहूर्त का प्रयोग करना चाहिए।
यदि सूर्योदय प्रातः 06:00 बजे तथा सूर्यास्त सायं 06:00 बजे हो तो चौघड़िया मुहूर्त निम्न प्रकार होगा-
से | तक | रवि. | सोम. | मंगल | बुध | गुरु | शुक्र | शनि |
06:00 | 07:30 | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल |
07:30 | 09:00 | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ |
09:00 | 10:30 | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग |
10:30 | 12:00 | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग |
12:00 | 13:30 | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर |
13:30 | 15:00 | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ |
15:00 | 16:30 | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत |
16:30 | 18:00 | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल |
18:00 | 19:30 | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ |
19:30 | 21:00 | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग |
21:00 | 22:30 | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ |
22:30 | 24:00 | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत |
24:00 | 01:30 | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर |
01:30 | 03:00 | लाभ | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग |
03:00 | 04:30 | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ | शुभ | चर | काल |
04:30 | 06:00 | शुभ | चर | काल | उद्वेग | अमृत | रोग | लाभ |
चौघड़िए में 7 तरह के मुहूर्त होते हैं इनमें से 4 शुभ और 3 अशुभ होते हैं। शुभ मुहूर्त चर, लाभ, शुभ और अमृत होते हैं, अशुभ मुहूर्त- काल, रोग और उद्वेग हैं| हमें जो भी शुभ काम करना हो उसके लिए चर, शुभ, लाभ और अमृत के मुहूर्त में करना चाहिए। इन चार शुभ मुहूर्त में भी आप ये तय कर सकते हैं कि जो काम आप करने जा रहे हैं वो इन चार में से किस मुहूर्त में करना चाहिए।
1. चर मुहूर्त- ऐसे काम जो आपको लंबे समय तक चलाना है जैसे वाहन खरीदना जो लंबे समय चलता रहे। उस काम को इस मुहूर्त में किया जा सकता है। इसे चर मुहूर्त कहते है।
2. शुभ मुहूर्त- शुभ का चौघड़िया नाम से ही स्पष्ट करता है कि सारे मांगलिक कार्य इस मुहूर्त में किए जा सकते हैं, शादी के रिश्ते, सगाई से लेकर सारे मांगलिक कार्य शुभ के चौघड़िए में किए जा सकते हैं।
3. लाभ मुहूर्त-ये लाभ देने वाला मुहूर्त है, जिस काम में आपको लाभ चाहिए, जैसे बिजनेस शुरू करना, कोई प्रोजेक्ट बनाना या किसी लोन वगैरह के लिए अप्लाय करना आदि जैसे कार्यो के लिए ये मुहूर्त शुभ होता है।
4. अमृत मुहूर्त- ये मुहूर्त बहुत ही खास है, ये ऐसे कामों के लिए होता है जिसे आप लंबी जिंदगी देना चाहते हैं। कोई बड़ा प्रोजेक्ट आदि जैसे काम इस मुहूर्त में शुरू किए जाते हैं, जो अच्छा फल प्रदान करते है।
5. अभिजित मुहूर्त- इनके अलावा एक अभिजीत मुहूर्त भी होता है जो किसी भी कार्य को शुरू करने के लिए शुभ माना जाता है। अभिजीत महूर्त प्रतिदिन आठवे पहर में आता है। अगर आपको किसी काम के लिए मुहूर्त नहीं मिल रहा हो तो वह कार्य अभिजीत मुहूर्त में किया जा सकता हैं। अभिजीत मुहूर्त प्रत्येक दिन में आने वाला एक ऐसा समय है जिसमे आप लगभग सभी शुभ कर्म कर सकते हैं। यहाँ एक बात स्पष्ट करने योग्य है कि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं होता। परन्तु यदि अभिजीत मुहूर्त और अभिजीत नक्षत्र एक साथ पड़ जाएँ तो अत्यंत ही शुभ माना जाता है। अभिजीत मुहूर्त में दक्षिण दिशा की यात्रा निषेध है और बुधवार को अभिजित मुहूर्त में कोई शुभ कार्य नहीं करना चाहिए|
होरा ज्ञान-चक्र मुहूर्त
सर्वकार्य सिद्धि के लिए होरा मुहूर्त श्रेयकर है। होरा मुहूर्त के अनुसार कार्यारंभ करके प्रत्येक मनुष्य अशुभ समय में होरा के अनुसार अपना कार्य सिद्ध कर सकते है। प्रत्येक होरा 1 घंटे की होती है। जिस दिन जो ‘वार’ होता है, उस ‘वार’ के आरंभ (अर्थात् सूर्योदय के समय) से 1 घंटा तक उसी वार का होरा रहता है। इसके बाद 1 घंटे का दूसरा होरा उस वार से छठे वार का होता है। इसी प्रकार दूसरे होरे के वार से छठे वार का होरा तीसरे घंटे तक रहता है। इस क्रम से 24 घंटे में 24 होरे बीतने पर अगले वार के सूर्योदय समय उसी (अगले) वार का होरा आ जाता है। इसी प्रकार अन्य दिनों के होराओं की जानकारी निचे दी जा रही है:
होरा |
रवि. |
सोम. |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
होरा-01 |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
होरा-02 |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
होरा-03 |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
होरा-04 |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
होरा-05 |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
होरा-06 |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
होरा-07 |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
होरा-08 |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
होरा-09 |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
होरा-10 |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
होरा-11 |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
होरा-12 |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
होरा-13 |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
होरा-14 |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
होरा-15 |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
होरा-16 |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
होरा-17 |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
होरा-18 |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
होरा-19 |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
होरा-20 |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
होरा-21 |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
होरा-22 |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
होरा-23 |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
बुध |
गुरु |
होरा-24 |
बुध |
गुरु |
शुक्र |
शनि |
रवि |
सोम |
मंग. |
जिस कार्य की सिद्धि के लिए जो होरा उपयुक्त हो, उसके अनुसार ही उस होरा में 1 घंटे में वह कार्य करेंगे तो अवश्य सफलता मिलेगी। होरा को ‘क्षणवार’ भी कहते हैं। वार से भी क्षण वार में प्रधानता मानी गयी है। इसलिए यह वार और क्षणवार दोनों अनुकूल हों, तभी किसी कार्य को करना चाहिए। आवश्यकता में, यदि वार अनुकूल न हों तो ‘क्षणवार’ अर्थात् होरा की अनुकूलता अनुसार कार्य करना चाहिए।
सूर्य की होरा टेंडर देने व नौकरी व राजकार्य के चार्ज लेने-देने के लिए शुभ होती है। चन्द्र की होरा सब कार्यों के लिए शुभ होती है। मंगल की होरा युद्ध, यात्रा, कर्ज देना, मीटिंग में जाना, मुकद्मा दायर करना शुभ होता है। बुध की होरा विद्यारम्भ, कोष संग्रह करना, नवीन व्यापार, नवीन लेख, पुस्तक प्रकाशन, प्रार्थनापत्र प्रस्तुत करने के लिए अच्छी होती है। गुरु की होरा विवाह संबन्धी कार्यक्रम, बड़ों से मिलना, कोष संग्रह, नवीन काव्य लेखन कार्यों के लिए लाभदायक होती है। शुक्र की होरा यात्रा, भूषण, नवीन वस्त्र धारण करना, सौभाग्यवर्धक कार्यों के लिए शुभ होती है। शनि की होरा भूमि मकान की नींव, नूतन गृहारम्भ, मशीनरी, मिल्स कार्यारम्भ समस्त स्थिर कार्यों के लिए लाभप्रद होती है।